कौन बैठेगा भला आकर मुझ ठूंठ के नीचे
ना छाया देता हूँ, ना असर बहारो का है
खूब देख लिया घूम फिर के दुनिया में
ना कोए गमख्वार वक्त के मारो का है
गला घोंट दू यादों का नया घर बसा लूं
मुझसे ना होगा ये काम तो गदारो का है
वो तो गम की कैद में हूँ वरना देता
क्या मतलब आजकल तेरे इशारों का है
हो जाती बरसात तो ना सुलगता बेचैन
दिल जलाने में हाथ हलकी फुहारों का है