khas log

गजले /पिछले दीदार का ही महीनो असर रहा था



हुश्न उसका आये रोज़ निखर रहा था
बन खुशबू फिज़ाओ में बिखर रहा था
जाने क्यू मेहरबा था खुदा उसपे इतना
हर अदा में अंदाज़ उसके भर रहा था
डाल न दे डाका कोई दौलते-हुश्न पर
यही सोच-सोचकर वो डर रहा था
तैर रहा था हल्का सा तबस्सुम लबो पर
जब आईने आगे बैठा वो संवर रहा था
मेरी तौबा भूले से ना जाऊंगा उसके आगे
पिछले दीदार का ही महीनो असर रहा था
जाने क्यू पसंद था बच्चो का उसे साथ
हलाकि  वो मेरा हम उम्र रहा था
हुआ था जिस रोज़ निकाह उसका बेचैन
पूरे शहर की वो ताज़ा खबर रहा था