khas log

Sunday, 18 September 2011

दोस्तों या वा कविता स जो कोलेज के दिना में लिखी थी अर आज भी जद देखू सू तो मैंने आशिक की दिलेरी पै हैरानी होवे स अक महबूब त तारे तोडके ल्यावन की बात कहन त आछ्या स या कविता सुना दो | एकदम जमीनी बात - आप सब के लिए




तेरे प्यार में खागड गैल टकराके दिखा दयूं मैं
जिस गली में ज्यादा कुते हो जाके दिखा दयूं मैं

जो भी कीमत मांगेगी. एक मिनट में दे दयूंगा
नही किसे न कहवे तो गोबर खाके दिखा दयूं मैं
थोडा बहुत मैं जैंटलमैन सूँ, निरा मोलड कोन्या
कहवे तो घर त कोट पैंट नया ल्याके दिखा दयूं मैं

झूठमूठ का कोन्या थारा, असली रिश्तेदार सूँ
कर ब्याह तेरे भाई प जीजा कुहाके दिखा दयूं मैं
खाण-पीण की शर्त इश्क में ना लावे तू श्याणी
आधा किलो हरी मिर्च भी खाके दिखा दयूं मैं

सिवा रागनी के यारां न नही आवे स कुछ भी
पर तेरे खातर तुना तुना गाके दिखा दयूं मैं
कर बेचैन महोब्बत में विश्वास मेरी बातां का
भुन्ड़े त भुन्ड़े जोहड़ में नहाके दिखा दयूं मैं









2 comments:

Anonymous said...

Bechain Ji...aap to ghane hi andi ho !!

Rajput said...

Jordar hai. Bahut mast likha hai