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khas log
Saturday, 9 July 2011
ना चाहते हुवे भी नाम तेरा लेता है बेचैन
तुझे हंसने से फुर्सत न थी मुझे बेबसी से
फिर कैसे तार्रुफ़ करवाता तेरा जिंदगी से
कुछ भी ख्याल न आया मेरी हालत का तुझे
मुह छुपा कर रोता रहा मैं बैठा बेबसी से
क्यों नहीं समझते महोब्बत के तुम उसूल
दर्दे-दिल नहीं कहा जाता हर किसी से
मेरे जज्बात ना समझकर गजब किया तुने
अब जीता हूँ ना मरता हूँ अपनी ख़ुशी से
तुने जिस रोज़ से बुझाया उम्मीद का चिराग
रिश्ता सा कट गया मेरा हसरतो की रोशनी से
ना चाहते हुवे भी नाम तेरा लेता है बेचैन
क्यों कर दिया तुने आखिर लाचार जी से
र राजू प्यार ना करिए,
र राजू प्यार ना करिए, कोए देई बढ़ा देगा
किसी के कान ना भरिये कोए देई बढ़ा देगा
खाण कमाण ज्योगा ना छोड़ेगा इश्क तैने
दिल के चक्कर में ना पड़िए कोए देई बढ़ा देगा
खेतां में जावे तो गंडा पाड के बाहर होइए
भरोटी बांध कर ना धरिये कोए देई बढ़ा देगा
इश्क में भी मेहनत करेगा तो ठीक रहवेगा
माल हराम का ना चरिये कोए देई बढ़ा देगा
इन बुज़ुर्गा में त ए लिकड़ी स या जवानी
पहलवान ज्यादा ना स्वंरिये कोए देई बढ़ा देगा
आज पल्ले गांठ मार ले या बात मेरी बेचैन
किसे क टाबरा प ना मरिये कोए देई बढ़ा देगा
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