khas log

Saturday 2 July 2011

लो जी शनिवार के नाम मेरी दारुशाला के ये दो जाम



बड़े-बड़े खानदान डुबो दे बेशक ठेके की गंगा
बिन पानी इज्जत धो दे बेशक ठेके की गंगा
धन दौलत राजपाट का बेशक मलियामेट हो जावे
पर पीवनिया अपना नियम जीते जी रोज़ निभावे

कदे त बुरा कहलाता आया, यो ज़ालिम प्याला दारू का
पर दारू पीवण त ए मिटेगा,एक दिन छाला दारू का
ख़ुशी में भी जाम छलके और  गमी में भी देवे साथ
बोतल जिसकी हमसफर स मस्ती उसकी भर ले बांथ

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