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Wednesday 5 October 2011

शूर्पनखा की माना तो,भाई होवे रावण बरगा




दशहरे के मौके पै आओ उल्हाना उतार देवां
अपने अपने मन का मिलके रावण मार देवां
हम भरत लक्ष्मन सा तो राम की सेवा करां
या फिर राम बनके छोट्या पै सब वार देवां
दिलों दिमाग त नफरत का ख्याल काढ के
अपने हर रिश्ते नै प्यार के बदले प्यार देवां
इज्जतदार समाज हो सोच गर या लेरे सो
छोरियां नै लेके आओ नजरियाँ संवार देवां
बेशक जाके चाँद पै कोए भाई प्लाट कटवाले
पर सदा औकात नै हम जमीनी आधार देवां
शूर्पनखा की माना तो,भाई होवे रावण बरगा
इस सच्चाई पै आओ अपणे हम विचार देवां 
जात धर्म गरीबी और महंगाई की दुश्मन हो
बेचैन समाज नै हम मिलकर वा सरकार देवां


1 comment:

sangeeta said...

बहुत अच्छी सोच है बेचैन जी आपकी.

सब जै बेचैन की इस सोच न जिंदगी मै उत्तार ल्यां,
तो म्हारे देश मै राम जिसा राज बण ज्यागा

अर हाम सारे दर्द, दुश्मनाई भूल ज्यांगे
सब रिश्तयाँ मै भाई चारा हो ज्यागा ,