khas log

Monday 23 April 2012

आज चुप थोड़े रहूँगा


मौका लाग्या सै आज चुप थोड़े रहूँगा
चाहे हो किसे कै खाज चुप थोड़े रहूँगा

मन की भडास सारी ए लिकाड़ दयूंगा
चाहे बुरा मानो समाज चुप थोड़े रहूँगा

अच्छे और बुरे की सब समझ आवे स
मैं भी खाऊं सूं अनाज चुप थोड़े रहूँगा

पैरां त पैदल सूं मगर दिमाग त नही
जब खुलग्या सै राज़ चुप थोड़े रहूँगा

मेरी शराफत उननै कमजोरी लागे सै
बणना पड़ेगा बेल्याज़ चुप थोड़े रहूँगा
क्यूकर जतावेगा वो अहसान मदद का
मैंने दे राख्या सै ब्याज चुप थोड़े रहूँगा

बेशक देर सवेर करूं दुश्मना का बेचैन
करके छोड़ना सै इलाज़ चुप थोड़े रहूँगा

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