khas log

Friday 9 May 2014

हालात अर बेरुखी दोनुआ की कमान सम्भाल रह्या सूं
मैं शिखर दोहपरी में बालू रेत पै नंगे पैर चाल रह्या सूं

इस तै ज्यादा कुछ नही कहूँगा नकली शुभचिंतका नै
दे देके आश्वासन मैं मन की भुंडी सोच टाल रहया सूं

सै तो नई सदी मैं कछुआ फेर भी मेहनत के दम पै
घमंडी खरगोशा तै जीतण का बस बहम पाल रह्या सूं

पक्का छेद कदे तो होवेगा एक नै एक दिन आसमा में
तबियत अर जोर लगाके मैं रोज पत्थर उछाल रह्या सूं

मेरी तकलीफ अर मन की बात यहाँ के समझेगा कोए
एक उम्मीद का पाणी रिसते घड़े में बेचैन घाल रह्या सूं

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