khas log

Wednesday 6 July 2011

लो भाई ओ आज की दारुशाला से दो पैग आपके लिए


सबते पहल्या जिसने पी उसने मेरी राम राम
दारू की बोतल जिसने ली उसने मेरी राम राम
दारू जिसने पहल्या बनाई वो मानस नहीं भगवान था
दुःख की दवा बनावन आल्ला क्यूकर कहू इन्सान था

जुग- जुग जीवे काडनिया जुग जुग जीव ठेकेदार
माटी का जिसने प्याला बनाया जुग जुग जीवे वो कुम्हार
उन कीड़ा का भी हो भला जो बार बार दारू चाहवे स
अर उनके पैरा में प्रणाम जो बिना पानी पी जावे स

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