khas log

Thursday 21 July 2011

शबनम का कत्ल करने वाली भौर ना हो तो अच्छा है

दिल में किसी की यारी का शोर ना हो तो अच्छा है
करम दोस्तों के अब और ना हो तो अच्छा है
ना सजे कही महफ़िलें और ना कही मैं शेर कहू
झूठी वाह-वाह सुनने का दौर ना हो तो अच्छा है
झूठी है तो झूठ रहे होठों की मुस्कान मगर
धडकनों पे किसी का गौर ना हो तो अच्छा है
बेशक रहे ख्वाब अधूरे रात मगर ये रात रहे
शबनम का कत्ल करने वाली भौर ना हो तो अच्छा है
देख लिया परख के बेचैन, गैर-गैर ही निकले
भविष्य में दिल का कोई चितचोर ना हो तो अच्छा है

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