मैं जज्बाता के दलदल में धंसता जा रह्या सूं
कहणा तो बहुत कुछ सै पर कह नही पा रह्या सूं
तू दिल पै अपणे हाथ धर के खुद तै जवाब दे
मैं जिकरा बार-बार किन बातां का ठा रह्या सूं
कोए और स्यामी होता तो कर लेता फैंसला
मुद्दत तै मैं तो अपणे आप तै टकरा रह्या सूं
तैने दर्द किते दिखे सै तो मलहम बणके लाग
ना तो फेर महफ़िल में मैं खूब मुस्कुरा रह्या सूं
ध्यान तै फूंक मारिये मेरे जख्मा पै बेचैन
मैं पह्ल्या ए दही के भ्रम में कपास खा रह्या सूं
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