khas log

Wednesday 20 February 2013

तैने दर्द किते दिखे सै तो मलहम बणके लाग



मैं जज्बाता के दलदल में धंसता जा रह्या सूं
कहणा तो बहुत कुछ सै पर कह नही पा रह्या सूं

तू दिल पै अपणे हाथ धर के खुद तै जवाब दे
मैं जिकरा बार-बार किन बातां का ठा रह्या सूं

कोए और स्यामी होता तो कर लेता फैंसला
मुद्दत तै मैं तो अपणे आप तै टकरा रह्या सूं

तैने दर्द किते दिखे सै तो मलहम बणके लाग
ना तो फेर महफ़िल में मैं खूब मुस्कुरा रह्या सूं

ध्यान तै फूंक मारिये मेरे जख्मा पै बेचैन
मैं पह्ल्या ए दही के भ्रम में कपास खा रह्या सूं



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