khas log

Wednesday 16 December 2015

तू ओरां के कल्चर पै क्यूँ लार टपका रह्या सै

ब्योंत पाच्छे भी जो कोए हवा में आ रह्या सै
मतलब वो माँ बोली का मखोल उड़ा रह्या सै

मांगेराम लख्मीचंद की कलाकारी झुठलाके
सुसरे क्यूँ पंजाब की झूठी पत्तल खा रह्या सै

अंग्रेजी में रेप का मतलब होवे सै बलात्कार
अर फेर भी तू खुद नै रेप सिंगर बता रह्या सै

हरियाणवी का भी हिस्सा सै चाँद के प्लाटा पै
तू ओरां के कल्चर पै क्यूँ लार टपका रह्या सै

रै रामफल आले छोरे इब तो बाज़ आज्या तू
क्यूँ खुद नै हन्नी सिंह का जाम बता रह्या सै

सौ रपिया में सौ एमबी का रिचार्ज करवाके
क्यूँ कुनबे की इज़्ज़त एफबी पै उड़ा रह्या सै

सुरताल का बेरा नही अर बड़ग्या स्टूडियो में
बता उल्लू के पट्ठे तू किस राग में गा रह्या सै

तू लिख के नै दो चार गंदे गीत रै नासमझ
जवान होती बाहण बेटियां नै भटका रह्या सै

तपस्या अर साधना का नाम सै कलाकारी
टैम पास करणियां नै बेचैन समझा रह्या सै 

Monday 1 June 2015

थोड़ा गधे चूरमा खा रे सै मैं इसलिए चुप सूं

सोच रहया सूं कान के नीचे फटकार दयूं।
माँ बोली के दुष्मनां की मां सी मार दयूं।।

खड़ा नाश कर दिया चमासै की औलादां नै।
इजाजत हो तो कुछ नकलियां ने समार दयू।।

मेरी हरदम कोशिश रहवै सै या ए दोस्तों।
मैं प्यार करणीया नै जी भर के प्यार दयूं।।

थोड़ा गधे चूरमा खारे सैं मैं इसलिए चुप सूं।।
नहीं तो कलाकारी न मैं कसूती सिंगार दयूं।।

बता दे बेचैन जिसके दम पै मेरी हस्ती सै।
उस हरियाणवी का कर्ज क्यूंकर उतार दयूं।।


Friday 9 May 2014

हालात अर बेरुखी दोनुआ की कमान सम्भाल रह्या सूं
मैं शिखर दोहपरी में बालू रेत पै नंगे पैर चाल रह्या सूं

इस तै ज्यादा कुछ नही कहूँगा नकली शुभचिंतका नै
दे देके आश्वासन मैं मन की भुंडी सोच टाल रहया सूं

सै तो नई सदी मैं कछुआ फेर भी मेहनत के दम पै
घमंडी खरगोशा तै जीतण का बस बहम पाल रह्या सूं

पक्का छेद कदे तो होवेगा एक नै एक दिन आसमा में
तबियत अर जोर लगाके मैं रोज पत्थर उछाल रह्या सूं

मेरी तकलीफ अर मन की बात यहाँ के समझेगा कोए
एक उम्मीद का पाणी रिसते घड़े में बेचैन घाल रह्या सूं

Friday 2 May 2014

तस्वीर गैल बतलावण में स्वाद तो आवे सै
टाइम अकेले बितावण में स्वाद तो आवे सै

बेशक किसे की याद में खामोश बैठणा पड़ो
पर एक घंटे में नहावण में स्वाद तो आवे सै

आटे में नमक जीतणा हो तो जिंदगानी भर
नाज़ किसे के उठावण में स्वाद तो आवे सै

ईमानदारी की ऐसी तैसी जो ढंग तै कर देवे
उस बेईमान तै चाहवण में स्वाद तो आवे सै

और कुछ तो बेरा नही पर महबूब की बेचैन
डांट अर कसम खावण में स्वाद तो आवे सै

Thursday 20 June 2013

वो देके हलक में डंडा मेरा हाल पूछे सै

 वो देके हलक में डंडा मेरा हाल पूछे सै
के पूंझड जवाब दूं रोज एक ए सवाल पूछे सै

बता मैं सुथरा लागूं सूं अक चाँद सुथरा सै
वो बिखेर के फेस पै जुल्फा का जाल पूछे सै

माँ का दूध पीया सै तो बाहर लिकड के दिखा
 जी तै रोज उसकी यादां का जंजाल पूछे सै

मैं शीशा देक्खण लागूं सूं जद भी गलती तै
कौण सै शक्ल की काली पडती खाल पूछे सै

मेरे तै कंधे पै लादण का किसा मज़ा आया
रोज दांत काढ के बिक्रम तै बेताल पूछे सै

सारे दिन लाग्या रहवे सै आंच सुलगाण में
गळगी सै कितणी अक लोगबाग़ दाल पूछे सै

मन बेचैन और करूं अक इतणा ए बहोत सै
डेली भीतरले में उठता भूचाल पूछे सै

Friday 14 June 2013

आदमी की सबसे बड़ी हिम्मत उसकी लुगाई हो सै


छोटी छोटी बात पै बेशक कितनी ए लड़ाई हो सै
आदमी की सबसे बड़ी हिम्मत उसकी लुगाई हो सै

पत्थर की भी छाती चीर दे सच में तारे तोड़ ल्यावे
अगर मेहनतकश की सच्ची हौसला अफजाई हो सै

किसे की हाय लागै प्यार में तो सदा याद राखियो
नजर उतारण की खातिर बस नूण और राई हो सै

उस हरामी धन का के कमीनेपण तै कोए जोड़ ले
असली दौलत तो अपणे दस नूआं की कमाई हो सै

रिश्तेदारी हो या महोब्बत पल्ले गांठ मार लियो
सच्चाई की झूठ बोलण तै ना कदे भरपाई हो सै

अपनापण दिखावे तो बेटे तै भी बढके दिखा दे
कमीनेपण पै आवे तो खतरनाक जमाई हो सै

जब तक जिन्दा रहवैगी माँ बाप नै भूलती कोन्या
बेचैन झूठ कहवे सै लोग बेटी तो पराई हो सै

Wednesday 20 February 2013

तैने दर्द किते दिखे सै तो मलहम बणके लाग



मैं जज्बाता के दलदल में धंसता जा रह्या सूं
कहणा तो बहुत कुछ सै पर कह नही पा रह्या सूं

तू दिल पै अपणे हाथ धर के खुद तै जवाब दे
मैं जिकरा बार-बार किन बातां का ठा रह्या सूं

कोए और स्यामी होता तो कर लेता फैंसला
मुद्दत तै मैं तो अपणे आप तै टकरा रह्या सूं

तैने दर्द किते दिखे सै तो मलहम बणके लाग
ना तो फेर महफ़िल में मैं खूब मुस्कुरा रह्या सूं

ध्यान तै फूंक मारिये मेरे जख्मा पै बेचैन
मैं पह्ल्या ए दही के भ्रम में कपास खा रह्या सूं